नवदुर्गा: देवी के नौ अद्भुत स्वरूप

1—– माँ शैलपुत्री

नवरात्रि के पहले दिन, हम देवी दुर्गा के पहले स्वरूप, माँ शैलपुत्री की पूजा करते हैं। माँ शैलपुत्री की उपासना पहले दिन की जाती है, इन्हे प्रकृति और शक्ति का प्रतीक माना जाता है। पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण उनका नाम ‘शैलपुत्री’ पड़ा।  देवी शैलपुत्री को सती नाम से भी जाना जाता है। एसा माना जाता है, माता की पूजा करने से यश, धन-धान्य, जीवनसाथी और मोक्ष की प्राप्ति होती है। माँ शैलपुत्री का वाहन वृषभ (नंदी) है। वृषभ उनकी गर्वितता, स्थिरता और शक्ति का प्रतीक है। यह वाहन माँ की महत्वपूर्ण गुणों को प्रकट करता है और उनके भक्तों को स्थिरता और समर्पण के भाव के साथ जीवन में सफलता की ओर प्रेरित करता है।

वन्दे वंछितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम् |

वृषारूढाम् शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ||

अर्थात् मैं मां शैलपुत्री को वंदन करता हूं, जो वंचित की इच्छाओं को पूरा करने वाली हैं। वह चंद्रमा के आधे हिस्से को अपने सिर पर धारण करती हैं। मां शैलपुत्री की सवारी वृषभ हैं और उनके हाथ में त्रिशूल होता है। यह सुंदर रूपवाली मां शैलपुत्री बहुत यशस्विनी हैं।

 

2 —— माँ ब्रह्मचारिणी

वरात्रि के दूसरे दिन, हम देवी दुर्गा के दूसरे स्वरूप, माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा करते हैं। ब्रह्मचारिणी, तपस्या और त्याग की अद्वितीय है। उन्होंने स्वयं को कठिन तपस्या में लगाकर भगवान शिव को प्राप्त किया। देवी ब्रह्मचारिणी की प्रतिमा में उनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएँ हाथ में कमण्डल रहता है। जपमाला ध्यान और तपस्या का प्रतीक है, जबकि कमण्डल शुद्धता और ज्ञान का प्रतीक है। ब्रह्मचारिणी की उपासना से भक्तों को आत्मिक शांति और ज्ञान मिलता है। वे भक्तों के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती हैं, नकारात्मक ऊर्जा से बचाती है।

दधाना करपद्माभ्याम्, अक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि, ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।

अर्थात् जिनके एक हाथ में अक्षमाला है और दूसरे हाथ में कमण्डल है, ऐसी उत्तम ब्रह्मचारिणीरूपा मां दुर्गा मुझ पर कृपा करें।

3 —— माँ चंद्रघंटा

नवरात्रि के तीसरे दिन, हम देवी दुर्गा के तीसरे स्वरूप, माँ चंद्रघंटा की पूजा करते हैं। माँ चंद्रघंटा, शांति और धैर्य की प्रतीक है। माँ ब्रह्मचारिणी की उपासना से व्यक्ति में तप, त्याग, वैराग्य, नैतिकता और संयम बढ़ता है।  माँ का रूप बहुत ही सौम्य है। मां चंद्रघंटा का पूजन करने से अहंकार नष्ट होता है और उनको समृद्धि, शांति और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। मां चंद्रघंटा का वाहन सिंह है।

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

अर्थात् हे माँ! सर्वत्र विराजमान और चंद्रघंटा के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है।

4 —— माँ कूष्मांडा

नवरात्रि के चौथे दिन, हम देवी दुर्गा के चौथे स्वरूप, माँ कूष्मांडा की पूजा करते हैं। कूष्मांडा, सृष्टि की उत्पत्ति की देवी हैं। मान्यता है कि जब कुछ भी नहीं था, तब कूष्मांडा ने अपनी मुस्कान से सृष्टि की उत्पत्ति की। माँ की आठ भुजाएँ हैं। इसलिए, ये अष्टभुजा देवी के रूप में भी प्रसिद्ध हैं। इनके सात हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र, और गदा हैं। सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला उनके आठवें हाथ में है। उनका वाहन शेर है।

सुरासंपूर्णकलशं, रुधिराप्लुतमेव च।

दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्मांडा शुभदास्तु मे।।

अर्थात् अमृत से परिपूरित कलश को धारण करने वाली और कमलपुष्प से युक्त तेजोमय मां कूष्मांडा हमें सब कार्यों में शुभदायी सिद्ध हो।

5 —— माँ स्कंदमाता

नवरात्रि के पांचवें दिन, हम देवी दुर्गा के पांचवें स्वरूप, स्कंदमाता की पूजा करते हैं। भगवान स्कंद ( कार्तिकेय ) की मां होने के कारण ही इनका नाम स्कंदमाता पड़ा। एसा कहते है मां स्कंदमाता की पूजा करने से व्यक्ति की हर समस्या का समाधान और उससे छुटकरा मिलता है। इनकी उपासना से ज्ञान एवं बुद्धिमत्ता की प्राप्ति होती है। साथ सारी इच्छाएं भी पूर्ण होंगी। एसा कहते है इससे भक्त को मोक्ष प्राप्ति भी होती है। माँ स्कंदमाता का वाहन है मांजरी, जिसका रूप होता है शेर। इस रूप में माँ स्कंदमाता अत्यंत महाशक्तिशाली और प्रशस्त होती हैं। शेर की धैर्यशीलता और साहस का प्रतीक होता है, जो माँ की भक्तों को साहस, संयम, और उत्साह की अनुभूति कराता है।

सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।

शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥

अर्थात् स्कंदमाता, जो कार्तिकेय के साथ सिंह पर सवार हैं, अपने दो हाथों में कमल और एक हाथ में वरमुद्रा धारण किए हुए हैं। ऐसी मां स्कंदमाता मुझे शुभता अर्थात् कल्याण प्रदान करें।

6 —— माँ कात्यायनी

नवरात्रि के छठे दिन, हम देवी दुर्गा के छठे स्वरूप, माँ कात्यायनी की पूजा करते हैं। नवरात्रि की षष्ठी तिथि पर मां दुर्गा के कात्यायनी स्वरूप की पूजा की जाती है। इस दिन मां कात्यायनी का पूजन करने से भक्तों को अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही यह पूजा शीघ्र विवाह के योग को बनाने में मदद करती है। मां कात्यायनी का स्वरूप चमकीला और तेजमय है, जो संयम और साधना का प्रतीक है। यही कारण है कि इस पूजा का महत्व अधिक होता है।

चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहन ।

कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी ॥

अर्थात् माँ कात्यायनी चांदनी के समान चमक वाली हैं, उनका वाहन शेर है और वे दानवों का विनाश करने वाली हैं, हम सबके लिए शुभदायी हो।

7 ——- माँ कालरात्रि

माँ कालरात्रि की उपासना नवरात्रि के सातवें दिन की जाती है। माँ कालरात्रि अंधकार, अज्ञानता और बुरी शक्तियों का नाश करती हैं। इनकी उपासना से भक्तों को भय से मुक्ति मिलती है। साथ ही साथ माँ शुभता का भी प्रतीक हैं और इनकी कृपा से सौभाग्य और शक्ति प्राप्त होती है। एसा कहते है देवी के इस रूप से सभी राक्षस,भूत, प्रेत, पिशाच और नकारात्मक ऊर्जाओं का नाश होता है।

एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता, लम्बोष्टी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा, वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥

अर्थात् माँ कालरात्रि का वर्ण रात्रि के समान काला है परन्तु वे अंधकार का नाश करने वाली हैं। दुष्टों व राक्षसों का अंत करने वाला माँ दुर्गा का यह रूप देखने में अत्यंत भयंकर लेकिन शुभ फल देता है इसलिए माँ “शुभंकरी” भी कहलाई जाती हैं। माँ कालरात्रि के ब्रह्माण्ड के समान गोल नेत्र हैं। अपनी हर श्वास के साथ माँ की नासिका से अग्नि की ज्वालाएं निकलती रहती हैं। अपने चार हाथों में खड्ग, लोहे का अस्त्र, अभयमुद्रा और वरमुद्रा किये हुए माँ अपने वाहन गर्दभ पर सवार हैं।

8 ——- माँ महागौरी

देवी महागौरी हिन्दू धर्म में देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों में से एक है। वह नवरात्रि के आठवें दिन पूजी जाती है। महागौरी का नाम अपने वर्ण से ही अद्भुत रूप को दर्शाता है। वह अत्यंत गौर ( सफ़ेद ) रंग की है, जिसकी उपमा शंख, चंद्र, और कुंद के फूल से की जाती है। उनके समस्त वस्त्र और आभूषण भी श्वेत हैं। महागौरी की चार भुजाएँ हैं और उनका वाहन वृषभ है। उनके ऊपर के दाहिने हाथ में अभय मुद्रा है और नीचे वाले दाहिने हाथ में त्रिशूल है। ऊपरवाले बाएँ हाथ में डमरू है और नीचे के बाएँ हाथ में वर-मुद्रा है। उनकी मुद्रा अत्यंत शांत है।

श्वेते वृषे समारुढा श्वेताम्बरधरा शुचिः।

महागौरी शुभं दघान्महादेवप्रमोददा॥

अर्थात् देवी महागौरी जो सफेद बैल पर सवार होती हैं, शुद्ध सफेद वस्त्र पहनती हैं, प्रसन्नता प्रदान करती हैं, ऐसी माँ महागौरी मुझे शुभता अर्थात् कल्याण प्रदान करें।

9 —— माँ सिद्धिदात्री

माँ सिद्धिदात्री देवी दुर्गा का नौवां स्वरूप हैं, जो नवरात्रि के नौवें दिन पूजी जाती हैं। इनका नाम ही सिद्धिदात्री है, जिसका अर्थ है “सिद्धि देने वाली”।इनका वाहन सिंह है। शास्त्रों में मां सिद्धिदात्री को सिद्धि और मोक्ष की देवी के रूप में जाना जाता है। मां सिद्धिदात्री का रूप इस प्रकार है वह चार भुजाओं में कमल, गदा, शंख और चक्र धारण करती हैं। एवं सिंह वाहन पर विराजमान, भक्तों को भय से मुक्ति प्रदान करती हैं। तथा श्वेत वर्ण, शांत मुख, और मातृत्व की भावना से ओतप्रोत है।

सिद्धगन्धर्वयक्षाघैरसुरैरमरैरपि।

सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥

अर्थात् देवी सिद्धिदात्री, जिन्हें सिद्ध, गंधर्व, यक्ष, देवताओं, दानवों आदि द्वारा पूजा जाता है, उनके हाथों में शंख, चक्र, गदा और कमल हैं, सभी सिद्धियों के दाता और उनके ऊपर विजय पाने वाली माँ सिद्धिदात्री मुझे शुभता अर्थात् कल्याण प्रदान करें।

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